Monday, February 15, 2010
पुरानी डायरी से...४
निर्विकार मन शिशु जैसा तो गीता क्या दुहराने को!
जी करता है मेरा, फिर से बच्चा बन जाने को ।
भाव, अभाव , कुभाव न होते, भेदों के बर्ताव न होते;
तृषा न होती, ब्यथा न होती, पल पल नए तनाव न होते;
इस गुड्डे की उस गुडिया से शादी रोज रचाया करते,
अपने रचे घरौंदे होते, उनके भवन बसाने को ।।१॥ ...
ओक्का बोक्का तीन तलोक्का , अक्कड़ बक्कड़ पंजा छक्का,
लट्ठे की पी पी रेल गाड़ी, कोई न होता बिना टिकट का;
काले जामुन खिरनी बासी, अमवा की कोइली कोइलासी;
टिकोरे की गुठली छटकाते, शादी की दिशा बताने को।। २॥ ..........
इस क्यारी से उस गमले तक, पौधा कितना बढ़ा शाम तक,
गोबर के गौर गणेश बताते, अतिथि देवता आते है अब;
मुट्ठी में भरकर चाँद सितारे लाने का इरादा पक्का होता,
दस पैसे का सिक्का होता, शहर खरीदकर लाने को॥ ३॥ ......
राजा, मंत्री, चोर, सिपाही, न्याय खेल में न्यारा होता,
किस्सों के बुझौवल में कितना सत्य शुद्ध बंटवारा होता,
अब तो पुस्तक से अनुसंशित, विधिक न्याय अभियुक्त प्रसंशित,
दांव पेंच में सहस गंवाते, खोटी कौड़ी पाने को !!४॥ ......
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acha likha hai
ReplyDeleteman ka bacha yuhi bana rhe sadaa
Welcome!
ReplyDeleteभाव, अभाव , कुभाव न होते, भेदों के बर्ताव न होते;
ReplyDeleteतृषा न होती, ब्यथा न होती, पल पल नए तनाव न होते;
इस गुड्डे की उस गुडिया से शादी रोज रचाया करते,
अपने रचे घरौंदे होते, उनके भवन बसाने को ।।१॥ ...
Waah!
इस क्यारी से उस गमले तक, पौधा कितना बढ़ा शाम तक,
ReplyDeleteगोबर के गौर गणेश बताते, अतिथि देवता आते है अब;
मुट्ठी में भरकर चाँद सितारे लाने का इरादा पक्का होता,
दस पैसे का सिक्का होता, शहर खरीदकर लाने को॥ ३॥ ....
Waah!
राजा, मंत्री, चोर, सिपाही, न्याय खेल में न्यारा होता,
ReplyDeleteकिस्सों के बुझौवल में कितना सत्य शुद्ध बंटवारा होता,
अब तो पुस्तक से अनुसंशित, विधिक न्याय अभियुक्त प्रसंशित,
दांव पेंच में सहस गंवाते, खोटी कौड़ी पाने को !!४॥ ....
wah wah. bahut khoob.