निर्विकार मन शिशु जैसा तो गीता क्या दुहराने को!
जी करता है मेरा, फिर से बच्चा बन जाने को ।
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गीत, जो अधिकतर आधे - अधूरे हैं, जीवन के द्वितीय अष्टांश में लिखे गए थे। आवश्यक नहीं कि, इनसे इंगित होने वाले विचार मेरे स्थायी विचार हों। साहित्यिक अभिरुचि को वास्तविक नाम एवं व्यावसायिक पहचान से अलग रखने के लिए "अधूरे गीत" ब्लॉग को बंद करके छद्म नाम से यह ब्लॉग प्रस्तुत किया जा रहा है। अधूरे गीत की रचनाएं इसमें शामिल कर ली गई हैं.
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