Monday, February 15, 2010

पुरानी डायरी से...

अंतिम कविता

हृदय नया, मस्तिष्क पुराना,
आवेगों का ताना बाना ;
संशयग्रसित क्रिया शापित है,
कुंठित कर्तापन बचकाना
*******
संबंधों के कारक कृशतर,
संज्ञाहीन समास अजाना;
अलंकार क्या , हेतु नहीं जब,
रस वर्जित, फिर कौन तराना
...............................कैसी कविता, कैसा गाना ?

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