अंतिम कविता
हृदय नया, मस्तिष्क पुराना,
आवेगों का ताना बाना ;
संशयग्रसित क्रिया शापित है,
कुंठित कर्तापन बचकाना।
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संबंधों के कारक कृशतर,
संज्ञाहीन समास अजाना;
अलंकार क्या , हेतु नहीं जब,
रस वर्जित, फिर कौन तराना ।
...............................कैसी कविता, कैसा गाना ?
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