कहाँ से यह मायूसी छायी, महावीर की मस्ती पर !
शंका क्यों होने लगती है, हमको अपनी हस्ती पर !
इतने डाके कैसे पड़ गए ! इतने चोर कहाँ से आये !
"नाम" का इतना सक्षम प्रहरी लगातार था गश्ती पर !!
...............................(अक्टूबर, १९९५)
नाम : नाम पाहरू दिवस निशि, ध्यान तुम्हार कपाट ।
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