Monday, February 15, 2010

पुरानी डायरी से.२ ..

निगाहें नाखुदा तेरी, कहीं इधर तो नहीं !
मेरे सीने में भी दिल है , पत्थर तो नहीं।
छोड़ के जाएँ कहाँ हुस्न हसीनों की गली,
मस्जिदों में ईमान का बसर तो नहीं।
श्रेय के संग प्रेय का जायका मुमकिन कहाँ,
ऐ मन तेरे मुताबिक मिली उमर तो नहीं।
बहुत मीठी है, रसीली है जुबां उसकी,
डरता हूँ, इस शहद में जहर तो नहीं!

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