बरसें न बरसें , न बिजली गिरायें ;
घटाओं से कह दो शहर न जलायें ।
मुहब्बत की झूठी सदाओं से कह दो,
नरमी में भींगी अदाओं से कह दो,
क़समें वफ़ा की बहुत खा चुके हैं,
कहो दोस्तों से थोड़ा शर्म खायें॥ बरसें न बरसें ..... ॥
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